देश को अंग्रेजों की कैद से आजादी दिलाने में अपना सर्वस्त्र लुटाने वाले क्रांतिकारियों का नाम आज विलुप्त होता जा रहा है। सन 1930 में राष्टपिता महात्मा गाँधी, संत विनोदा भावे के सानिध्य में “नमक आंदोलन” की लड़ाई में कूदे जगमोहन मंडल को आज इस देश का युवा वर्ग शायद ही जानता हो।
क्रांतिकारी के रूप में गए कई बार जेल
इस क्रांतिकारी को कई बार पटना की जेल एवं मंडल कारागार में बंद किया गया। परन्तु इनका हौसला कम नहीं हुआ। इस क्रांतिकारी को अंग्रेज सिपाहियों ने इतना मारा-पीटा कि, यह अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते थे।
आखिर में जब देश सन 1948 में आजाद हुआ, तो उनकी मौत हो गयी। परन्तु उनके बलिदान की कहानी आज विलुप्त हो गयी है। जबकि उनके परिजनों को आज भी ऐसा लगता है कि, शायद उन्हें गुमनामी के अँधेरे से बाहर निकालने में सरकार सहायता करे।
आजादी की लड़ाई में योगदान
जगमोहन का जन्म कृत्यानंद नगर प्रखंड के रहुआ गांव में सन 1910 में हुआ था। इन्होने प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही प्राप्त की। एवं आगे की पढ़ाई के लिए पटना के विधापीठ में पढ़ाई की। वे पटना में ही आंदोलनकारियों के संपर्क में आये। तथा आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
वे अंग्रेजों की नजर में तब आये, जब उन्होंने पूर्णिया जिले के अनेकों अनुमंडलों फारबिसगंज, कटिहार, कुर्सेला रुपौली एवं अटरिया में भिन्न-भिन्न शाखा की स्थापना कर युआओं को देश की आजादी में शामिल करने का काम किया। अंग्रेजों ने उन्हें नील की खेती का विरोध करने के दौरान गिरफ्तार कर लिया। एवं इतना मारा कि, वे बुरी तरह घायल हो गए।
उपचार के बाद भी वह ठीक से चल पाने में असमर्थ थे। इसके पश्चात भी वे लगातार क्रांतिकारियों के साथ घुड़सवारी से लड़ाई में लगे रहे। वायरलेस तार काटने का काम स्वतंत्रता सेनानी पूर्व सीएम भोला पासवान शास्त्री, जीवत्स शर्मा, विशुन देव मिश्रा, बंगाली सिंह, दशरथ यादव, रतन दुबे, हिमांशु, चुम्मन चौधरी, तनुक लाल मेहता ने किया।
अगस्त क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान
उन्होंने सन 1942 में होने वाली “अगस्त क्रांति” के पूर्व जिले के रानी पतरा, कुरसेला, टीकापट्टी, कझा कोठी, सेमापुर जैसे स्थानों पर जाकर युवाओं को एकजुट किया, उनकी अनेकों बार अंग्रेज सैनिकों के साथ कावर कोठी, कझा कोठी, बड़हरा कोठी, काबर कोठी में भी लड़ाई हुई।
जगमोहन बाबू के साथ उनकी पत्नी गंगा देवी ने भी सन 1942 के “अगस्त क्रांति” में समाज के शोषितों को मुख्यधारा में लाने के लिए हस्तकरघा को बढ़ावा देने के लिए काफी योगदान किया। उन्होंने निरंतर घूम-घूम कर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध नवयुवकों को स्वराज प्राप्ति की ट्रेनिंग दी। फरवरी 1948 में जगमोहन बाबू की मृत्यु हो गयी। जिन्होंने देश की आजादी में अपना सर्वस्त्र लुटाकर व् एक क्रांतिकारी के रूप में जो बलिदान दिया,वो आज इतिहास से कहीं गायब हो गए।
हुक्मरानों को नहीं है चिंता
आज तक न कहीं उनकी प्रतिमा लग पायी, न आज तक कोई उनकी अस्थि पर फूल चढाने आया, न आज हमारे हुक्मरानों को उनकी चिंता है। शहीद जगमोहन मंडल के बेटे रामजी मंडल ने अपने बल पर पिता के नाम पर रहुआ गांव में एक अति सुन्दर प्रवेश द्वार बनवाया। राम जी अपने बेटे बिटटू कुमार, शैलेन्द्र कुमार के साथ समाज के दलित, शोषितों के गांव, मोहल्ले में जाकर शिक्षा की रौशनी फैला रहे हैं। एवं स्वरोजगार की ट्रेनिंग दिलवा रहे हैं।
राम जी मंडल कहते हैं कि, उनके शहीद पिता के नाम पर उच्च विद्यालय रहुआ का नामकरण किया जाये। कम से कम हरदा-रहुआ सड़क का नाम उनके पिता के नाम पर किया जाये। उनके पिता के बाद उनकी माता की पेंशन स्वीकृत हुई। इनका कहना है कि, सरकारी सेवाओं में स्वतंत्रता सेनानी के परिजनों को उनकी शैक्षिक योग्यता के अनुसार वरीयता दी जाए। आज भले ही हम उनका गुणगान कर रहे हों, परन्तु उन शहीदों व् उनके परिजनों को उचित सम्मान मिले बिना सब अधूरा है।